SABHA KA KHEL - Subhadra kumari chauhan poem summary in hindi | सभा का खेल कविता -सुभद्रा कुमारी चौहान सारांश/ व्याख्या
SABHA KA KHEL - Subhadra Kumari Chauhan|Subhadra kumari chauhan poem summary in hindi|सभा का खेल कविता -सुभद्रा कुमारी चौहान सारांश/ व्याख्या
<< सभा का खेल >>
सुभद्राकुमारी चौहान >>
>> संक्षिप्त व्याख्या:~ प्रस्तुत कविता "सभा का खेल" हिंदी साहित्य की प्रसिद्ध कवियत्री सुभद्रा कुमारी चौहान द्वारा लिखी गई है। यह कविता वीर रस की है । कविता में कवित्री सुभद्रा कुमारी चौहान ने बच्चो के मध्य एक खेल के जरिए महात्मा गांधी, जवाहर लाल नेहरू व सरोजनी नायडू जी के चरित्र व शौर्यपूर्ण कार्यों की झांकी प्रस्तुति की है । कविता में कवित्री पंक्तियों के माध्यम से पहले तो गांधी जी, नेहरू जी, सरोजनी नायडू जी के हुलिए का वर्णन करती है फिर वह बताती है उनके कार्यों को , किस प्रकार स्वतंत्र के आंदोलनों में अपने भाषणों से लोगों को स्वतंत्रता के लिए प्रोत्साहित किया, लाठियां खाई, जेल गए । आगे पंक्तियों में कवित्री गांधी जी के चरखा चलाकर स्वालंबी बनने की सीख , नेहरू जी के खादी अपनाने, स्वदेशी वस्तुओं को प्रोत्साहित करने विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार करने के संदेश और सरोजनी नायडू जी के हिंदू मुस्लिम एकता के लिए किए गए प्रयासों को बहुत ही प्रभावी ढंग से बताया है । "सभा का खेल" कविता में बच्चो के बीच खेल का अनुपम वर्णन है ।
>>कविता<<
सभा का खेल आज हम
खेलेंगे जीजी आओ,
मैं गांधी जी, छोटे नेहरू
तुम सरोजिनी बन जाओ।
मेरा तो सब काम लंगोटी
गमछे से चल जाएगा,
छोटे भी खद्दर का कुर्ता
पेटी से ले आएगा।
लेकिन जीजी तुम्हें चाहिए
एक बहुत बढ़िया सारी,
वह तुम माँ से ही ले लेना
आज सभा होगी भारी।
मोहन लल्ली पुलिस बनेंगे
हम भाषण करने वाले,
वे लाठियाँ चलाने वाले
हम घायल मरने वाले।
छोटे बोला देखो भैया
मैं तो मार न खाऊँगा,
मुझको मारा अगर किसी ने
मैं भी मार लगाऊँगा!
कहा बड़े ने-छोटे जब तुम
नेहरू जी बन जाओगे,
गांधी जी की बात मानकर
क्या तुम मार न खाओगे?
खेल खेल में छोटे भैया
होगी झूठमूठ की मार,
चोट न आएगी नेहरू जी
अब तुम हो जाओ तैयार।
हुई सभा प्रारम्भ, कहा
गांधी ने चरखा चलवाओ,
नेहरू जी भी बोले भाई
खद्दर पहनो पहनाओ।
उठकर फिर देवी सरोजिनी
धीरे से बोलीं, बहनो!
हिन्दू मुस्लिम मेल बढ़ाओ
सभी शुद्ध खद्दर पहनो।
छोड़ो सभी विदेशी चीजें
लो देशी सूई तागा,
इतने में लौटे काका जी
नेहरू सीट छोड़ भागा।
काका आए, काका आए
चलो सिनेमा जाएँगे,
घोरी दीक्षित को देखेंगे
केक-मिठाई खाएँगे!
जीजी, चलो, सभा फिर होगी
अभी सिनेमा है जाना,
आओ, खेल बहुत अच्छा है
फिर सरोजिनी बन जाना।
चलो चलें, अब जरा देर को
घोरी दीक्षित बन जाएँ,
उछलें-कूदें शोर मचावें
मोटर गाड़ी दौड़ावें!
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Nice one Knowledgeable artical for students
ReplyDeleteThank you for value my work 😊
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